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Aug 6, 2023

कागज़ की कश्ती

जब बारिश होती है, तो कोई और नज़ारा नज़र सा नहीं आता। दिल खो जाता है उन बूंदों में जो आसमान से धरती पे गिरती हैं, मिट्टी की महक से हमारे दिलों को सम्मोहित कर लेती हैं।
दिल के तार बारिश की आवाज़ से छिड़ जाते हैं और बजने लगते हैं कानों में बरसात के गीत। इस बारिश के स्वर में ना कोई संगीत वाद्य का साथ होता है , ना कोई गायक की आवाज़ बोलों को सुर दे रही होती है। फिर भी हम उस बारिश को चुपचाप खड़े निहारते हैं।

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एक सुकून सा आता है बारिश को देखकर। पर इस खूबसूरत नज़ारे में कई बार बड़े-बड़े तूफ़ान भी छुपे होते हैं। कई बार ये खूबसूरत बला बाढ़ का रूप ले कर कई लोगों की ज़िंदगियाँ लील जाती है। पर क्या बाढ़ की वजह हमारे ऊपर गरज रहे बदल हैं, या फिर उन लोगों की कोई चाल जो विकास के नाम पर हमारी आधारभूत संरचना को पूरी तरह से नेस्तनाबूत कर देते हैं?

ये सवाल तब तक बना रहेगा, जब तक कोई समाधान नहीं निकाला जायेगा। तब तक बस याद कीजिए बरसती बूंदों को देखकर स्वर्गीय श्री जगजीत सिंघजी की ग़ज़ल "वो कागज़ की कश्ती , वो बारिश का पानी। " कागज़ की ये कश्ती बारिश के पानी पर फिर से तैरती हुई हमारा मन मोह ले।

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Navni Tandon

Navni Tandon, works as a professional Content Writer in a private company. As a teenager, she was inclined towards writing, which metmorphosed into her dream of becoming a public writer.

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© 2025 by Elvira Fernandez

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